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अब खुला है मुख्य न्यायधीश चंद्रचूड़ के फैसलों में एक खास पैटर्न का रहस्य
नई दिल्ली। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के आवास पर आयोजित निजी धार्मिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने को शक्तियों के पृथक्कीकरण के सिद्धांत पर हमला बताया है। उन्होंने कहा कि इस तस्वीर को इतिहास संवैधानिक मर्यादा को कुचलने के प्रतीक के बतौर याद रखेगा।
 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 75 वर्षों में देश के प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश औपचारिक कार्यक्रमों के अलावा किसी निजी अवसर पर एक साथ कभी नहीं दिखे हैं। यह हमारे संविधान द्वारा विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के कारण था। शाहनवाज़ ने कहा कि देश के संविधान निर्माताओं को इस बात की समझ थी कि तानाशाही को रोकने और लोकतंत्र के विकास के लिए यह जरूरी है कि ये तीनों शक्तियां स्वतंत्र और संप्रभु हों।  
 

शाहनवाज़ आलम ने आगे कहा कि भाजपा मनुवादी एजेंडे पर वोट तो पा लेती है लेकिन संविधान और कानून उसके वृहद लक्ष्य में बाधा साबित होते हैं। इसलिए एक रणनीति के तहत कभी मुख्य न्यायाधीश गुजरात के किसी मन्दिर में जाकर धर्म ध्वजा को न्याय का ध्वज बताते हैं तो कभी प्रधानमंत्री उनके घर व्यक्तिगत पूजा कार्यक्रम में शामिल होकर संविधान पर मनुवाद के वर्चस्व को स्थापित करने का प्रयास करते हैं। 
 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री की निजी तस्वीर सार्वजनिक हो जाने के बाद डीवाई चंद्रचूड़ के कई फैसलों में एक निश्चित पैटर्न दिखने का रहस्य खुल गया है। उनके कॉलेजियम द्वारा मुसलमानों, दलितों और ईसाइयों के खिलाफ नफरती भाषण देने वाली तमिलनाडु की महिला भाजपा नेत्री विक्टोरिया गौरी को चेन्नई हाई कोर्ट का जज नियुक्त करना तथा जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए भारत के संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द की मौजूदगी को कलंक बताने वाले पंकज मित्तल को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करना, फर्जी मुठभेड़ों के आरोप में अमित शाह को जेल भेजने वाले गुजरात हाई कोर्ट के जज अक़ील क़ुरैशी को वरिष्ठता के बावजूद सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त नहीं करना और जस्टिस लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई हत्या की जांच कराने से इनकार करना कुछ चर्चित उदाहरण हैं। इस तस्वीर से यह भी समझ में आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मॉब लिंचिंग और बुल्डोजर से घर तोड़े जाने के मामलों पर जारी किए जाने वाले नोटिसों के बावजूद भाजपा शासित राज्यों में ऐसी घटनाएं क्यों नहीं रुक रही हैं? संवैधानिक मर्यादाओं पर इस हमले को देश बर्दाश्त नहीं करेगा।